शनिवार, 28 अगस्त 2021

एडवोकेट प्रोटेक्शन वर्तमान समय की आवश्यकता लेकिन एडवोकेटों को भी मर्यादा अनुशासन में रहकर सेंटिंग सिस्टम और न्यायालय के दुरूपयोग से बाज आना होगा

त्वरित संपादकीय 

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

बेशक ही आज के समय में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट बेहद जरूरी है और एडवोकेटों के मामले में सुरक्षा परम आवश्यक है । हालात इतने बदतर हैं कि न तो पुलिस ही और न किसी विभाग के अधिकारी ही एडवोकेटों की बात सुनते हैं और न ही किसी प्रकार की कोई सुरक्षा ही देते हैं । परिणाम स्वरूप अनेक एडवोकेटों के साथ मारपीट और उनकी हत्याओं की घटनायें घटित हुईं हैं । 

यह बेहद लाजिम और निहायत ही जरूरी है कि तुरंत एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लाया जाये और लागू किया जाये , इसके साथ ही एडवोकेटों के लिये उनका ई डब्ल्यू एस , आर्थिक रूप से कमजोर अर्थात जो इनकम टेक्स नहीं देता या जिसकी साला आमदनी 8- 10 लाख से कम है , उन सभी को वित्तीय सहायता एवं अन्य सभी प्रकार की सहायता व अनुदान योजनाओं का लाभ देने के लिये तुरंत उपाय किये जाने चाहिये , इसके लिये आनलाइन प्रमाणपत्र हेतु आवेदन की सुविधा दी जानी चाहिये , एडवोकेट के सभी बैंक अकाउंटों का और आधार कार्ड पेन कार्ड आदि और उससे लिंक बैंक अकाउंट का विवरण प्राप्त करना चाहिये और पात्र पाने पर उसके लिये प्रतिमाह कम से कम 5 - 10 हजार रूपये महीने की वित्तीय सहायता दी जानी चाहिये , चाहे उसकी कुछ भी उमर हो , चाहे वह कितने भी समय की प्रेक्टि में हो । सत्य को स्वीकार किया जाना चाहिये वरना न्याय को जिंदा रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायगा । 

भारत में हर आदमी की आखरी उम्मीद केवल न्यायालय से होती है और हर प्रयास के बाद असफल होने पर न्यायालय ही उसेा अंतिम आसरा , श्रीकृष्ण और सारथी होता है , वहॉं जब न्याय की गुणवत्ता घटती है या न्याय की गरिमा गिरती है तो आम आदमी का न्यायालय से भरोसा और विश्वास दोनों ही खत्म हो जाते हैं । 

न्याय की गुणवत्ता और गरिमा बेहद आवश्यक है , न्यायालयों की साख गिरती जा रही है , लोगों का विश्वास उठता जा रहा है तो कहीं न कहीं एडवोकेट ही उसके लिये जिम्मेवार हैं । 

अयोग्य और समझौतावादी तथा सेटिंग वाले एडवोकेटों से अदालतें भरी पड़ीं हैं । जो किसी ज्ञान या अनुभव विशेष के आधार पर वकालत नहीं करते बल्कि केवल सेटिंग के जरिये , या तो व्यर्थ ही केस की तारीखें बढ़़वाते रहते हैं , या किसी केस को टालते रहते हैं , या किसी फाइल के अहम सबूत या दस्तावेज गायब करा देते हैं या बदलवा देते हैं । या फिर किसी केस को रजिस्ट्रेशन से ही रोकते रहते हैं , बेशक कोर्ट का लिपिक वर्ग इसमें हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है , मगर सच तो यही है कि इसमें जिम्मेवार तो असल में किसी एडवोकेट की कुंठित मानसिकता या सेंटिंग मानसिकता या किसी से दो नंबर में पैसे खाकर और खिलाकर केसों को ठंडे बस्तों में डलवाने की कोशिशें और फाइल में से कागजात , दस्तावेजात गायब कराने और बदलने जैसी महत्वपूर्ण चीजें शामिल हैं । 

इससे न्याय प्राप्ति में विलंब हो या न्याय न मिले और जिस उममीद या आस के साथ कोई परिवादी / फरियादी / वादी / प्रतिवादी अदालत तक आया था , अपना समय बर्बाद और अपना धन बर्बाद कर रहा था , वहॉं ऐसे लोग चाहे वह एडवोकेट हों या अदालत का कोई भी लिपिक हो या न्यायाधीश , सभी जिम्मेवार होते हैं और अपने अपने पेशे पर बदनुमा दाग धब्बे और कलंक होते हैं । 

इनसे अदालतों को मुक्त किये जाने के भी उपाय बेहद लाजिमी और वक्त की सख्त आवश्यकता हैं , हमने देखा है अदालतें ई फाइलिंग प्रणाली से बेहद घबरातीं हैं , क्योंकि वहां जमा ई पेपरबुक के हर दस्तावेज का नाम , जमा करने का समय और उसकी तहरीर ज्यों की त्यों जस की तस मौजूद रहती है , उसके किसी भी कागज को कोई भी गायब नहीं कर सकता ओर न बदल सकता है । हमारे ख्याल से यह भारत के हर केस में अनिवार्यत: की जानी चाहिये और अपलोड की जाने वाली पी डी एफ फाइलें हर प्रकरण में जमा की जानीं चाहियें , पहले ई फाइल अपलोड की जानी चाहिये , उसके बाद ही फिजिकल हार्ड कापी पेश की जानी चाहिये , कोर्ट को दोनों फाइलें मिलान कर लेना चाहिये उसी के बाद ही मामला प्रोसीड करना चाहिये , इससे अदालतों में अंधेरगर्दी काफी हद तक दूर होगी। 

भ्रष्ट व अंधेरगर्दी करने वालों को बेहद इससे तकलीफ होगी और वे कभी नहीं चाहेंगें कि कोई केस ई फाइल के रूप में कोर्ट के सर्वर पर अपलोड हो , वे हमेशा इससे बचने का प्रयास करेंगें और पुराने बैलगाड़ी युग के ढर्रे वाले अंधेरगर्दी वाले सिस्टम की ओर ही कोर्ट को धकेंलेंगें । क्योकि इसके चलते केवल न्याय की ओर बढ़ना ही शेष रह जाता है । 

आदतन ही ऐसा होता है और न्याय में कृत्रिम विलंब कारित किया जाता है, तारीखें बढ़वा बढ़वा कर पक्षकार को बुरी तरह से आतंकित कर उसके न्याय प्राप्ति की सारी उम्मीदों पर पानी फेरकर उसे राजीनामा करने या अदालत से भागने पर मजबूर कर दिया जाता है । इस प्रकार से अन्याय सिस्टम चलाने वाले सभी लोगों का अदालतों से उठाकर बाहर फेंकना होगा , तभी न्याय प्रणाली सार्थक होगी ओर लोगों का अदालतों में विश्वास लौटेगा । 

फिर इसके बाद जो भी अच्छे लोग , अच्छे एडवोकेट अदालतों में रह जायें बेशक उनके लिये एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाना चाहिये लेकिन दलाली , सेटिंग और अंधेरगर्दी करने वालो को बेशक इस सिस्टम का लाभ नहीं देना चाहिये , बढ़ने वाली हर तारीख की स्टडी बेहद गहराई से की जाना चाहिये , और अदालत की हर टाइमलाइन ओर आर्डरशीट में स्पष्ट तौर पर तहरीर होना चाहिये कि तारीख क्यों बढ़ी या क्यों बढ़ाई गई । 

यदि किसी एडवोकेट द्वारा अधिक केसों की वजह से तारीख बढ़वाई जा रही है तो , एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट में , एडवोकेसी प्रोटेक्शन भी होना चाहिये और जिस एडवोकेट के पास कम केस हों या बिल्कुल केस न हों उनकी सूची में से किसी को भी वह केस आवंटित कर देना चाहिये और अधिक केसों में व्यस्त एडवोकेट की व्यस्तता कम करने और कम केसों वालों या बिल्कुल केस नहीं वालों को थोड़ी व्ययस्तता देने का प्रावधान  एडवोकेसी प्रोटेक्शन के तहत एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट में होना चाहिये । 

( लेखक न्याय बंधु , न्याय विभाग , विधि एवं न्याय मंत्रालय भारत सरकार के रूप में सन 2017 से ग्वालियर हाईकोर्ट के जूरिस्डिक्शन में तथा इनकी अधीनस्थ अदालतों में एडवोकेट के रूप में कार्य कर रहे हैं )               

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